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Wednesday, June 4, 2014

डूबनेवाली यह कश्ती है

वृक्ष कटे , जंगल हटा ;
 गाँव के बदले शहर बसा। 

न पौधें है, न पेड़ है ;
सीमेंट के घरो का ढेर है।  

फूल नहीं, फल नहीं ;
क्या यह आनेवाला कल नहीं ?

सोच भी है, खोज भी है,
क्या धरती कहीं ओर भी है ?

इस धरती पर भी बस्ती है,
संभालो, डूबनेवाली यह कश्ती है। 

- अली असगर देवजानी 
       (5-6-2014)