हो कितना भी अमीर इंसान लेकिन ,
सुकून नहीं मिलता, जाएदात बेचकर
सरकारी अफसरों को
क्या पड़ी हे गरीबों की,
सो रहे
हे सारे ,
घोड़ो को बेच
कर
बढ़ रहा हे इन्सान आगे हर जगह में ,
अपनी संभाल, दुसरो कीं टांग खेचकर
हो रहा हे अभ भी
जुल्मो सितम जहाँ में ,
देख रहे हे सारे , आँखों को मींचकर
करते हे कई
फोटोग्राफर अपनी कमाई
खिची हुई गरीबों
की ,तस्वीरे बेचकर
-- अली असगर
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