वृक्ष कटे , जंगल हटा ;
गाँव के बदले शहर बसा।
न पौधें है, न पेड़ है ;
सीमेंट के घरो का ढेर है।
फूल नहीं, फल नहीं ;
क्या यह आनेवाला कल नहीं ?
सोच भी है, खोज भी है,
क्या धरती कहीं ओर भी है ?
इस धरती पर भी बस्ती है,
संभालो, डूबनेवाली यह कश्ती है।
- अली असगर देवजानी
(5-6-2014)
गाँव के बदले शहर बसा।
न पौधें है, न पेड़ है ;
सीमेंट के घरो का ढेर है।
फूल नहीं, फल नहीं ;
क्या यह आनेवाला कल नहीं ?
सोच भी है, खोज भी है,
क्या धरती कहीं ओर भी है ?
इस धरती पर भी बस्ती है,
संभालो, डूबनेवाली यह कश्ती है।
- अली असगर देवजानी
(5-6-2014)