धंधे एक - दो नहीं चार गए थे,
चिन्टूमिंया ने जब जीवन अंत का सोचा,
उनके पिताजी ने तब उन्हें खूब डांटा,
बोले वो घाटे हुए थे हमें कईबार,
फिर भी न आये थे ऐसे विचार ,
बुजुर्गोने हमें समझाया था ,
मुश्किल हालातों से बचाया था ,
जीवन अंत का विचार तुम जाओ भूल,
अपने कार्यो में तुम हो जाओ मशगूल,
इस मंदी से तुम मत डरो ,
मेरी सलाह पे सिर्फ अमल करो,
बुजुर्गो के मार्गदर्शन से घाटे हुए थे दुर ,
वही तो दौर था जब हम हुए थे मशहूर ,
उस सलाह ने अपना चमत्कार दिखाया,
चिन्टूमिंया के जीवन में एक नया दौर आया.
-अली असगर देवजानी